वाराणसीः 167 साल पुराने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की भव्यता लौटी, सीमेंट की जगह उड़द दाल, गुड़, दही का हुआ इस्तेमाल

वाराणसीः 167 साल पुराने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की भव्यता लौटी, सीमेंट की जगह उड़द दाल, गुड़, दही का हुआ इस्तेमाल









गॉथिक शैली में निर्मित 167 साल पुराने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के मुख्य भवन की रौनक लौट आई है। करीब एक दशक से उपेक्षा की शिकार इस भवन का जीर्णोद्धार तीन साल पहले शुरू हुआ था। अब भवन में प्रवेश करते इसकी भव्यता का एहसास होता है। इसकी प्राचीनता बनाए रखने के लिए जीर्णोद्धार में भवन निर्माण की सदियों पुरानी तकनीकों का इस्तेमाल हुआ है।


भवन मुख्यत: पत्थरों से बना है। जिस पर विशेष तरीके से प्लास्टर किया गया था। धीरे-धीरे यह कई स्थानों से उखड़ गया था। दीवारें जीर्ण-शीर्ण हो गई थीं। भवन में कई स्थानों पर प्लास्टर फिर से किया गया। मगर उसमें सीमेंट और बालू का प्रयोग नहीं किया गया। उड़द दाल, गुड़, बेल, दही और चूने के मिश्रण से प्लास्टर किया गया। प्रोजेक्ट इंचार्ज प्रदीप भारद्वाज बताते हैं कि यह प्लास्टर काफी मजबूत होता है। तापमान को भी नियंत्रित करता है।


मलेशिया की लकड़ी से बनाई गई छत


भवन के सेंट्रल हाल की छत लकड़ी की बनी हुई थी। रखरखाव में लापरवाही से यह क्षतिग्रस्त हो गई थी। लकड़ी से बनी पूरी छत को बदला गया है। इसके लिए मलेशिया से विशेष किस्म की लकड़ी मंगाई गई। इस लकड़ी की आयु तीन सौ साल की मानी जाती है। बरसात के पानी से बचाने के लिए इस बार उस पर लोहे की शीट भी लगाई है । शीट को भी वाटरप्रूफ बनाया गया है।


बेल्जियम के शीशे को चेन्नई के कारीगरों ने फिट किया


भवन के चारों ओर रंगीन शीशे लगाए गए थे। यह बताया जाता था शीशे राशियों के रंग के अनुसार है। उससे छनकर सूर्य की रोशनी जमीन पर श्रीयंत्र जैसी आकृति बनाती थी। कई स्थानों के शीशे टूट गए हैं। जिसे दोबारा लगाने के लिए बेल्जियम से शीशा मंगाया गया। चेन्नई से आए कारीगरों ने शीशे को फिट किया।


कोलकाता से मंगाई गई विशेष प्रकार की मिट्टी


इमारत में कई स्थानों पर लगी टैरोकोटा की कलाकृतियां क्षतिग्रस्त हो गई थी। इनको नया रूप देने के लिए कोलकाता से विशेष प्रकार की मिट्टी बनाई गई, जिसे 1300 सेंटीग्रेड पर पकाया गया। उसे फिर पुरानी जैसी कलाकृतियां बनाई गई। इसके अलावा कई अन्य कार्य हुए, जिससे लगभग गिरने के कगार पहुंच चुके मुख्य भवन की आयु बढ़ गई है।


विभिन्न संस्कृतियों का संगम है मुख्य भवन


मुख्य भवन की कलाकृतियों को देखने से एहसास होता है कि इसके निर्माण में कई संस्कृतियों की छाप रही होगी। मुख्य द्वार प्रवेश करते दोनों तरफ चीनी ड्रैगन स्वागत करते दिखते हैं। कई स्थानों पर मछलियों के चित्र हैं। कई स्थानों पर सांपो के चित्र उकेरे गए हैं। हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी के साथ-साथ फारसी लिपि में लिखे नीति वाक्य दिखाई देते हैं। कई ऐसे प्रतीक हैं, जिसका अर्थ बताने वाला यहां कोई नहीं है।


प्रकाश और वायु की अद्भुत व्यवस्थाप्रकाश और वायु के लिए अद्भुत व्यवस्था की गई है। छत कई स्थानों से खुला हुआ है। वहां से रोशनी अंदर आती है। इस तकनीक को स्काई लाइट कहते हैं। दिन में लाइट जलाने की जरूरत नहीं पड़ती। हवा के आने-जाने के लिए भवन के चार कोने में पिलर बनाए गए हैं, जो बाहर से नहीं दिखाई देते हैं।